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भाग मत विचार से / राम सेंगर
Kavita Kosh से
भाग मत विचार से ,
विचार से न भाग !
भाव दे न भाव को
कि कथ्य उलट जाए ।
खोल,और खोल बात
दूर तलक जाए ।
लाज़िम है —
जले, और जलती ही रहे सदा
दबी-दबी ठण्डी पड़ जाएगी आग ।
आया है, और नहीं
आएगा और ।
क्रूर-अराजक ऐसी
खुन्नस का दौर ।
लाज़िम है —
इस खिलन्दड़ी का चस्का तोड़ें
जनमत को समझे जो, साबुन का झाग ।
घेर-मार की
सीनाजोरी को रोक ।
रौंद से भयातुर है
यह मँगललोक ।
लाज़िम है —
बचने की जुगत का सिला मिलना
निष्कुण्ठा से फूटे जीवन का राग ।
भाग मत विचार से ,
विचार से न भाग !