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भाषा का नट / अखिलेश्वर पांडेय
Kavita Kosh से
अखबारनवीस परेशान है-
अनर्गल के समुद्र में
गिर रही है वितर्क की नदियाँ
तलछट पर इधर-उधर
बिखरे पड़े हैं शब्द
प्रत्यय की टहनी पर बैठा है उल्लू
समास की शाख पर लटका है चमगादड़
कर्म की अवहेलना कर
बैठा है कुक्कुर
क्रिया वहीं खड़ी है चुचपाप
संज्ञा-सर्वनाम नंगे बदन
लेटे हैं रेत पर
हैरान है अखबारनवीस -
यह भाषा का कौन सा देश है
तभी अचानक
लोकप्रियता की रहस्यमयी धुन बजाते
अवतरित होता है
भाषा का नट
डुगडुगी बजाके
शुरू करता है तमाशा
सब दौड़े चले आते हैं
बनाके गोल घेरा
देख रहे अपलक
खेल रहा है भाषा का नट
उछाल रहा अक्षरों को
उपर-नीचे, दायें-बायें
तालियों से गूंज रहा चतुर्दिक
खुश है भाषा का नट