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भाषा में बनती औरत / सुजाता
Kavita Kosh से
चुस्त टीशर्ट में जब वह आया
उसके चेहरे पर से गायब था आदमी
कुहनी मारकर वे मुझे बोलीं-
बड़ा औरतबाज़ है,
बच कर रहना,
तुम्हें औरत होने की तमीज़ नहीं है।
और इस तरह धकिया दिया उन्होंने
भाषा में बनती औरत को
थोड़ा और नीचे
और निश्चिंत हो गईं
कि अब कुछ ग़लत नहीं हो सकेगा।
लेकिन कभी वापस नहीं जा सकीं घर वे
औरत होने की शर्मिंदगी लिए बिना
ठीक वैसे जैसे हर सुबह लौटती थीं
एक ग्लानि लिए घर से।