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भूल पाते फूल हैं कब खिलखिलाना / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
भूल पाते फूल है कब खिलखिलाना
भूलते कब नैन हैं आँसू बहाना।।
हर भरोसा पार भी जाना जरूरी
नाव है पर भूलती कब डगमगाना।।
कब न जाने जिंदगी की हो विदाई
कौन जाने हो कहाँ अपना ठिकाना।।
मोड़ था वह मार्ग का केवल तुम्हारे
थे समझ बैठे जिसे तुम आशियाना।।
कब मिला करते किनारे हैं नदी के
भँवर में भी हार कर मत बैठ जाना।।
थक चुके हो अब चला जाता नहीं है
किसलिए अब कर रहे हो यह बहाना।।
सिर्फ़ मंजिल पर टिका लो दृष्टि अपनी
छोड़ दो अब राह में यूँ लड़खड़ाना।।