भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोजपुरी / केदारनाथ सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोकतन्‍त्र के जन्‍म से बहुत पहले का
एक जिन्‍दा ध्‍वनि-लोकतन्‍त्र है यह
जिसके एक छोटे से ‘हम ’ में
तुम सुन सकते हो करोडों
‘मैं ’ की घडकनें
किताबें .
जरा देर से आईं..
इसलिए खो भी जाएं
तो डर नहीं इसे
क्‍योंकि जबान –
इसकी सबसे बडी लाइब्रेरी है आज भी

कभी आना मेरे घर
तुम्हें सुनाऊंगा
मेरे झरोखे पर रखा शंख है यह
जिसमें धीमे-धीमे बजते हैं
सातों समुद्र.