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भोर / नारायण झा
Kavita Kosh से
उठू बौआ, उठू बुचिया
भेलै देखू भोर
पूब दिशासँ सूरज हुलकै
देखू भेल इजोर
छोड़ि चिड़ैया अप्पन खोता
खूब मचाबै सोर
नेना-भुटका ख़ूब नचै छै
जेना नचैए मोर
गाछ-पात पर लाल-पियर
रौदे पोरे-पोर
उठू बौआ, उठू बुचिया
भेलै देखू भोर।