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भोली-सी गौरैया / रामानुज त्रिपाठी
Kavita Kosh से
बड़ी सलोनी एक चिरैया
भोली-भोली-सी गौरैया।
कभी किचन में
कभी मुँडेरे,
बैठ-बैठ कर
रोज सबेरे-
चीं-चीं-चीं-चीं बोल-बोल कर
मुझे जगाती, जागो भैया।
धीरे - से -
आँगन में आती,
दाने चुन-चुन
कर उड़ जाती-
नाच-थिरक खिड़की के ऊपर
करने लगती-‘ताता थैया!’
नींबू की
डाली-डाली पर,
गेहूँ की सुंदर
बाली पर-
गाती मीठे-मीठे स्वर में
फुदक-फुदककर छंद सवैया!
-साभार: नंदन, जुलाई, 1996, 37