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भोली आतमा / कुंदन माली
Kavita Kosh से
दिन दूणी रातां चौगुणी
दुनिया दौड़ै माथौ फौड़े
आघी हालै आधी चालै
अर यूं धापै आसमान
समझी ! भोल़ी आतमा
आघा खोया आधा पोया
थोड़ा हांस्या थोड़ा रोया
सूखा कपड़ा घणा निचोया
घणा खूटग्या थोड़ा होया
सबरी खाई खाटमा
समझी ! भोल़ी आतमा
लोग होयग्या लीरी-लीरी
सुख-छाया री बणी पंजीरी
आघा पेट आंख री तीरी
लू ज्यूं उड़ती फिरै फकीरी
ज्यूं जी चावै राखलां
समझी ! भोल़ी आतमा
अंधड़ में कुम्हलावै दीबड़ा
दूर बस्या हिवड़ै सूं पीवड़ा
खुद समझै समझावै जीवड़ा
थूं समझै तो कांईं समझै
पण समझै है आसमान
समझी ! भोल़ी आतमा
सुलझ्या डोलै सेवा समचै
दूजी माया खुद रै कब्जै
परपीड़ा में कांई ं बच्चै
लालच में भारा पण पच्चै
जी चावै तो आजमा
समझी ! भोल़ी आतमा !