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मंदिर / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
जब तुम सिखला रहे थे
ईंटों को, घर न बनकर
चोट बन जाना,
जब, मैंने तुमसे कहा था।
मत बांधो शांति के
महासागर पर
प्रतिहिंसा के बंदरगाह,
क्योंकि तब
आस्था के हिमालय
ढह जाते हैं
आशा का प्रायद्वीप
बंजर हो जाता है।