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मंदिर जैसी माँ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सुबह ख़ुद चार पर उठकर,
हमें माँ ने जगाया है।
कठिन प्रश्नों के हल क्या हैं,
बड़े ढंग से बताया है।
किताबें क्या रखें कितनी रखें,
हम आज बस्ते में,
सलीके से हमारे बेग को,
माँ ने जमाया है।
बनाई चाय अदरक की,
परांठे भी बनाये हैं।
हमारे लंच पेकिट को,
करीने से सजाया है।
हमारे जन्म दिन पर आज खुद,
माँ ने बगीचे में।
बड़ा सुंदर सलोना-सा,
हरा पौधा लगाया है।
फरिश्तों ने धरा पर,
प्रेम करुणा और ममता को।
मिलाकर माँ सरीखा दिव्य,
एक मंदिर बनाया है।