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मछली / निर्मल आनन्द
Kavita Kosh से
मछली सिर्फ़ चारा देखती है
चारे में छुपा काँटा नहीं
नहीं देखती उस महीन डोर को
जिससे बंधा है चारा
और न ही उस डंडी को
जिससे बंधी है डोर
उन हाथों को भी
नहीं देख पाती है
जो थामे हुए हैं डंडी
मछली देखती है यह सारा दॄश्य
जब वह पानी के बाहर होती है ।