भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मजल मतै पुकारसी / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पग उठा’र चालसी
मजल मतै पुकारसी।

तावड़ी घणी कड़ी,
मेह री बंधी झड़ी,
पण न थम पल घड़ी
तू निसंक जीतसी
रोक थाम हारसी
मजल मतै पुकारसी।

जळै बळै दिन ढळै
रात चांद झळ मळै
पण न जे मग टळै
हवा पसेव पूंछसी
पंथ नै बुहारसी
मजल मतै पुकारसी।

फूल नै तू मुळक
सूळ नै तू मुळक
मत हिचक मत झिझक
गीत कंठ भारती
आरती उतारसी
मजल मतै पुकारसी।