भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मत बातें दरबारी कर / द्विजेन्द्र 'द्विज'
Kavita Kosh से
मत बातें दरबारी कर
सीधी चोट करारी कर
अब अपने आँसू मत पी
आहों को चिंगारी कर
काट दु:खों के सिर तू भी
अपनी हिम्मत आरी कर
अपने दिल के ज़ख़्मों —सी
काग़ज़ पर फुलकारी कर
सारी दुनिया महकेगी
अपना मन फुलवारी कर
आना है फिर जाना है
अपनी ठीक तैयारी कर
मीठी है फिर प्रेम—नदी
मत इसको यूँ खारी कर