Last modified on 25 जून 2022, at 00:50

मधुमास सुहाया / प्रेमलता त्रिपाठी

झूम उठा मन यौवन छाया ।
देख सखा मधुमास सुहाया ।

कली गली शोभित अँगनाई,
मीत रसाल अजब बौराया ।

कंचन सर्षप पीत वधूटी,
खनके नूपुर मन भरमाया ।

लोचन खंजन मनस विहंगा,
छलके मधुरस फागुन आया ।

रंग भरे नभ भूतल शोभा,
बन रसिया मनमीत लुभाया ।

पहरू सीमा साध रहें हैं,
बन रक्षक संकल्प उठाया ।

देश प्रेम का चोला पहने,
रंग वसंती है मन भाया ।