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मधुरस से नहलायें / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
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आओ मिलकर
नई दिशा में
रथ को और बढ़ायें
छाया वाले
पेड़ लगायें
बोनसाई को काटें
षटरस वाले
चाखें फल हम
लकड़ी से घर पाटें
और पत्तियाँ
खेतों से मिल
अधिक अन्न उपजायें
हवा विषैली
हमें मिलेगी
अमृत घट लेकर
सोनल बरखा
करें बदलियाँ
भीगें सब जी भर
सम्पूर्ण प्रकृति के
हिरदय में
अपनापन भर जाये
अंदर-बाहर
नेह नदी हो
जिसमें अवगुण धो लें
प्राणवायु भर
मन की खिड़की
सबके खातिर खोलें
पत्थर जैसे
शब्दों को हम
मधुरस से नहलायें