मधुशाला / भाग 3 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
हाथोॅ में आबै सें पहिलें
नखरा दिखलैतै प्याला,
ठोरोॅ पर आबै सें पहिलें
भावो दिखलैतेॅ हाला,
ढेरे तेॅ इनकारो करतै
साकी आबै सें पहिले;
घबड़ैयोॅ नैं राही, पहिलेॅ
स्वागत करथौं मधुशाला । 13
धार लपट रं लाल सुरा केॅ
बोली बैठियो नै ज्वाला,
उफनैलोॅ मदिरा ई छेकै
कहियौ नै मन रोॅ छाला,
दर्द नशा ई मदिरा केरोॅ
याद सिनी भुललोॅ साकी;
पीड़ा में सुख जौनें पाबै
आबौ हमरोॅ मधुशाला । 14
दुनियाँ के शीतल हाला रं
राही, हमरोॅ नै हाला,
जग के ठंडा प्याला रं नै
राही, हमरोॅ ई प्याला,
ज्वाल-सुरा जलतेॅ प्याला में
दग्ध मनोॅ के कविता ई;
जरबोॅ सें भयभीत नै जे छै
आबौ हमरोॅ मधुशाला । 15
देखलौ बहतेॅ हाला, देखोॅ
लपट उठैतें ई हाला,
आबेॅ देखोॅ प्याला छूथैं
ठोर जरैयै दै वाला;
‘देह दहेॅ, पर ठोर बचेॅ, आ
पीयै लेॅ दू बूंद मिलेॅ’-
हेनोॅ मधु रोॅ दीवाना केॅ
आय बुलाबै मधुशाला। 16
झोंकी देलकै धर्मग्रंथ सब
जेकरोॅ अन्तर के ज्वाला,
मंदिर, मस्जिद, गिरजा सबकेॅ
तोड़लकै जे मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादरियो के
फंदा जे काटी चुकलै,
करेॅ सकै छै आय ओकरे
स्वागत हमरोॅ मधुशाला । 17
लालायित ठोरोॅ से जौनें
हाय, चुमलकै नै हाला,
हर्ष विकंपित हाथोॅ सें जे
छुलकै नै मधु रोॅ प्याला,
हाथ धरी लज्जित साकी रोॅ
जे नगीच नै खींचलकै,
व्यर्थ सुखैलकै जीवन केरोॅ
वैंनें मधुमय मधुशाला । 18