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मनोरथ / देवशंकर नवीन

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हमरा वरदान दिअ’ गुरूदेव !
जे हम धृत्तराष्ट्र नहि बनि सकी
ने संजय

ने अर्जुन-सन नपुंसके बनि पाबी गुरूदेव !
नपुंसक नहि होइ

कोनो कृष्णकें
हरदम
हमरा हमर कर्तव्य-पाठ नहि पढ़ब’ पड़नि

जँ देबाक अछि
तँ वरदान दिअ’
जे हम लकड़हसास होइ
हमरा एकटा कुरहरि होअए आ बांहिमे होअए ताकत
जे हम
काटि दी
अपन छाती पर ठाढ़, झुमैत....
अइ समस्त यूकिलिप्टसक गाछकें....