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मन्नू हरिया / अंगिका लोकगाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

वन्दना
लागी गेलै अजमतिया हो गोसैंया, फिरै धरमोॅ के व्येॅ हो वार
माया रचना रचै बाबा हो, अलख भग हो वान
एन्होॅ माया रचलकै बाबा हो, त्रिलोकी भग हो वान
दोनों कर जोड़ी केॅ बाबा हो, लबी-लबी करियौं पर हो नाम
हम्में निरबुधिया बाबा हो, करौं धरमोॅ के व्येॅ हो वार
सम्मुख दर्शन दियहवोॅ बाबा हो, भगतिया के हो नजर
हम्में भक्ति के भगत हो बाबा, जपभौं रोजे-रोज भगति के
हरि हो नाम
जिनगी में जब तक काया बचतौं बाबा हो
जपभौं हरि-हरि हो नाम
भुललोॅ-चुकलोॅ दाता निरंजन, हमरोेॅ हाजरियो निर हो माय।
 
दोहा
गुरू ब्रह्मा अनादि का, हृदय में ध्यान लगाय
हाथ में लेखनी पकड़ के चरण शीष नवाय

कियो विचार मन में यह, लिखूँ हरिया डोम का गीत
‘प्रभात’ लिख दियो सुनी केॅ हरिया डोम का गीत
गाथा वाचक जो मुझे जनायो, लिख दियो कागज पे अमृत।
हो, हो यहो गाथा छेकै जोति भगत के समय रोॅ हो भाय
जखनी कि जोति जाय छेलै करै लेॅ भगति हरि हो नाम
जोति आरो हरिया डोम दोनों नें चराबै छेलै
एक्के साथें बरेलवा वन में हो सूअर
दोनों बचपन रोॅ छेलै लंगोटिया संगी हो साथी
वही समय में मिललै दोस्त लंगोटिया हरिया डोमा हो भाय
वहीं पलोॅ में दाता निरंजन आपनोॅ सूअर हरिया डोमा केॅ सौंपे
आरो चललै करै लेॅ भगति हरि हो नाम
हरिया डोमा गछी लेलकै जोति के सूअर हो चराय
मजकि डोमा नें जोति सें करलकै एक्के कौल हो करार
हो, रे भाय जोति, तों जे जाय छैं, भगति करै लेॅ जाय छैं
यै भगति के आधा-आधी फल बाँटै लेॅ पड़तौ
कहेॅ तेॅ लागलै जोति नें हरिया केॅ समुहो झाय
हे रे भाय हरिया, तोरोॅ यहो बात हम्में स्वीकार करी लेलियौ
है बात बोली चललै करै लेॅ भगति हरि हो नाम
जबेॅ जोति भगति तपस्या करी केॅ घुरलै आपनोेॅ घर हो वार
आपनोॅ दोस्तोॅ के वादा निभाबै लेली
धरी लेलकै दोस्तोॅ के घरोॅ के हो डगर
एक्के कोसे चललै दोसरो कोसे तेसरी चौथोॅ हो कोसेॅ
पहुँची गेलै हरिया के हो द्वार
जोति नें पहुँची केॅ दाता निरंजन, आधा-आधी बाँटी
देलकै पंथ हो गोसाँय
तबेॅ दुन्हू दोस्तें अपना-अपनी घरोॅ पर, सेवेॅ लागलै
पंथ आरो हो गोसाँय
पंथ आरो गोसाँय के सेवा सुश्रसा करतेॅ-करतेॅ,
डोमा केॅ हो गेलै धन अपरम हो पार
डोमा केॅ भगति सें रिझलै, पंथ आरो हो गोसाँय
डोमा केॅ जाँचे लेॅ, ऐलै सुरपुर सें एक दिना
पंथ आरो हो गोसाँय
पंथ आरो गोसाँय दाता निरंजन, पहुँची गेलै हरिया डोमा
घरोॅ के हो नगीच
डोमा घरोॅ के नगीच चराबै छेलै एक गैधोरैय नें हो गाय
पंथ आरो गोसाँय दाता निरंजन माया करलकै विस हो तार
पंथे नें ब्राह्मण रूप धरि केॅ पूछलकै धोरैय सें
हरिया डोम के हो घोॅर
गैधोरैय नें हाथोॅ के इशारा सें देलकै डोमा के घर हो बतलाय
आरो पूछेॅ लागलै, हों बाबा तों तेॅ लागै छोॅ कोय महान हो पुरुष
तोहें बाबा कहिनें खोजै छोॅ, हरिया केॅ हो
हौ तेॅ छेकै जाति के हो बाबा डोम
ब्राह्मण नें धौरैय केॅ कहै समु हो झाय
जोॅन दिनमा सें हम्में आपनोॅ गुरू सें, दीक्षा लेलेॅ छियै रे धोरैय
वही दिनमा सें हम्में जाति-पाती के नै करै छियै रे वरण ।
एतना कही-कही केॅ ब्राह्मण चललोॅ गेलै हरिया डोमा के हो द्वार
हौ दिना हो दाता निरंजन, सूप-डलिया बेचै गेलोॅ छेलै
डोम-डोमनियाँ सूजागंज हो बाजार
आरो घरोॅ के जोगबारी में छोड़ी देनें छेलै
आपनोॅ बेटा रणजीत हो कुमार
रणजीत कुमार आपनोॅ संगी-साथी साथें
खेलै छेलै गुल्ली डंडा के हो खेल
ब्राह्मण भेष धरी, पंथेॅ, दाता निरंजन,
पारेॅ लागलै हरिया डोमा केॅ हो हाँक
हाँक सुनी केॅ दाता निरंजन, गुल्ली-डंडा छोड़ी केॅ ऐलै
रणजीत हो कुमार
ब्राह्मण केॅ देखी केॅ दाता निरंजन, दोनोॅ कर जोड़ी केॅ
रणजीत करै पर हो णाम
ब्राह्मण नें मनोॅ सें आशीष दै छै, रणजीत हो कुमार
फिनू रणजीत द्वारी पर सें घुरी आवै छै धरेॅ हो ऐंगन
घरोॅ सें दाता निरंजन रणजीत नें निकालें छै
बट्टू सें पैसा, डाला सें अरबा मोती हो चौर
रणजीत नें द्वारी पर आबी केॅ चौर आरो पैसा दियेॅ लागलै
लीयोॅ-लीयोॅ हो बाबा, भीक्छा हो हमार
भीक्छा देखतै दाता निरंजन, ब्राह्मण नें रणजीत केॅ
कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें बलकबा हम्में नै लेबौ भीक्छा आरो नै छोड़बौ रे द्वार
हम्में रास्ता में एकादशी-द्वादशी बरत करनें छियै आरो
बरत निस्तार करी केॅ तोरा द्वारी पर ऐलोॅ छियौ रे बलकवा
हमरा सात दिन-रात बिती गेलोॅ छौ
बिनू अन्ने-पानी के रे बलकवा
सें तों रे बलकवा हमरा पनियाँ रे पिलाव
कुछु देर सोची केॅ रणजीत कुमारें कहलकै हो भाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो बाबा, सुनोॅ हमरोॅ हो वचन
हे हो बाबा, हम्में छेकां जाति के डोम
सें तों डोमोॅ जाति घरोॅ रोॅ जल केना करभो हो ग्रहण
सुनें-सुनें रे बलकवा, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
जोॅन दिनां से गुरू सें दीक्षा लेलेॅ छियै रो बलकवा
वही दिनमां सें हम्में जाति-पाजी केॅ नै राखै छियै वरण
एतना सुनी केॅ रणजीत नें ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
हो बाबा तोरानी रोॅ कृपा सें हमरा छै अनेॅ-धनोॅ रोॅ बौछार
हो बाबा तोरा मनोॅ में जे खाय के हुवै, हौ बतलाय देॅ हो बाबा
हमरा घरोॅ में कोय चीजोॅ के कमी नै छै हो बाबा
एतना सुनी केॅ ब्राह्मण नें बलकवा केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे बलकवा, सुनेॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
हमरा दैवैं लिखलेॅ छै रे बलकवा, हरिया हाथोॅ सें भोजन रे सुसार
एतना बातोॅ पर रणजीत नें ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
आजु के दिनां हो बाबा हमरोॅ माय-बाप गेलोॅ छै
सूप-डलिया बेचै लेॅ सूजागंज हो बाजार
एतना सुनी केॅ ब्राह्मण नें रणजीत केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे बलकवा, सुनें हमरोॅ रे वचन
जल्दी सें तों बोलाबैं रे बलकवा, बाजारोेॅ से आपनोॅ माय रे बाप
एतना वचन सुनी केॅ रणजीत नें ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
हे हो बाबा हम्में केना केॅ जैबोॅ हो बाजार
हमरा माय-बाबू नें रखलेॅ छै घरोॅ के ही जोगवार
हो बाबा घरोॅ सें जों एक्को सामान चोरी होय जेतै तेॅ
हमरोॅ पीठी के चमड़ा हो उदार
सुनें-सुनें रे बलकबा, सुनेॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
जों तोरा घरोॅ सें एक्कोॅ सामान चोरी होतौ तेॅ
हम्में तोरा देबौ दोबर हो लगाय
जल्दी सें तों जाबें रे बलकबा आपनोॅ माय बाबू रोॅ रे पास
एतना सुनी केॅ रणजीत नें माय रोॅ देलोॅ बाँसुरी निकाली केॅ
फुँकलेॅ-फुँकलेॅ बाजारोॅ रोॅ डगर धरलकै हो भाय
यै बाँसुरी रोॅ करामत छेलै दाता निरंजन
विपत्ती के धड़ियाँ में आवाज
जों है बाँसुरी कुमार रणजीत नें फूँकै छेलै तेॅ
आवाज पहुँची जाय छेलै माय-बाबू रोॅ पास
बाँसुरी फूँकतै दाता निरंजन, माय दौड़ली चललोॅ हो आबै
जेना कि लेरुआ के डकरतैं गैया खमशली चललोॅ हो आबै
डोमनियाँ नें बाँसुरी के आवाज सुनतै हरिया केॅ कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो स्वामीनाथ, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
कोन विपतिया पड़लै हो स्वामीनाथ
जे सुनाय पड़ै छै बाँसुरी के आवाज
जल्दी सें समेटोॅ हो स्वामीनाथ, सूपेॅ आरो हो डलिया
जल्दी सें चलोॅ हो स्वामीनाथ महलोॅ केरोॅ हो ओर
हरियाँ कहै डोमनियाँ केॅ समु हो झाय
सुनें-सुनें सतवरती गे, सुनेॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
रोजे-रोजे के येहे खबरिया, तेॅ सूपवा केना केॅ बिकतौ
जबेॅ सौदा बिकेॅ लागै छौ गे, तेॅ रोजे-रोजे के यहेॅ हो लीला
जेना लागै छौ तोरा जुगा केकरौ आरो बेटा नै रहेॅ
हे हो स्वामीनाथ दोसरा रोॅ बेटा नाच-गान करै छै
हमरोॅ हो बेटा स्वामीनाथ, करै छै भगति हरि हो नाम
आबेॅ तेॅ यही बातोॅ पर उठलै दून्हू जीवोॅ में हो लड़ाय
असरा देखतें-देखतें हो आबी गेलै माय-बाबू लुग रणजीत हो कुमार
डोमनियाँ के नजर पड़तैं दौड़ी केॅ रणजीत केॅ हिरदय हो लगाय
कोन बिपतिया पड़लौ रे बेटा जे तोंआबी गेलें रे बाजार
आहो नहीं मोरा मारलकै माता जी कोय संगी हो साथी
नहीं मोरा मारलकै बाबूजी हितुवन हो समाज
रणजीत नें कहलकै माय-बाबू केॅ समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो मोरा जन्मदाता, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
आपनोॅ दरवाजा पर एलोॅ छौं एक संत मेह हे मान
वहीं संतेॅ खोजै छौं तोरोॅ मुल हे कात
नै तेॅ भीक्छा लै छौं हो बाबूजी, नै छोड़ै छौं हो द्वार
यही संतेॅ कहे छौं, तोरोॅ बाबू केॅ हाथोॅ सें करबौ भोजन हो आधार
एतना सुनतै तीनोॅ प्राणी चललै आपनोॅ हो महल
घर पहुँचतै हो दाता निरंजन, करलकै ब्राह्मण सें मुल हे कात
हरिया नें दोनोॅ कर जोड़ी केॅ ब्राह्मण केॅ करै पर हे णाम
मनोॅ सें आशीषबा दै छै ब्राह्मणनें हरिया डोम केॅ हो भाय
जियें-जियें रे हरिया, तोरोॅ काया अमर भई हो जाय
सुनें-सुनें रे हरिया, सुनेॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
सुनै में हमरा ऐलोॅ छो रे हरिया
तों आजु दिनां बड़ी धरमतमा होलोॅ छै रे
यही लेॅ हम्में ऐलोॅ छियौ तोरोॅ रे द्वार
सात दिन-रतियाँ पर हम्में अन्न-पानी रोॅ
एकादशी-द्वादशी वरत तोड़नें छियै रे
से तों आय खिना शुद्ध माँस भोजन रे कराव
एतना सुनतैं दाता निरंजन, हरिया आचरजोॅ में पड़ी गेलै रे भाय
एतना वचन सुनतैं हरिया ऐलै महलोॅ में डोमनिया केरोॅ हो पास
तबेॅ दुन्हू जीवेॅ मिली केॅ करै लागलै ब्राह्मण के भोजन के विचार
हरिया केॅ डोमनियाँ नें कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो स्वामीनाथ, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
हे हो स्वामीनाथ बिहानी हम्में सुअर चराय खिनी जंगलोॅ में
देखलेॅ छेलियै गाय के खाल उदारलोॅ हो माँस
आभी तांय हो स्वामीनाथ, कोय कौआ-कुत्ता नै खैलेॅ होतै हो
चलोॅ-चलोॅ हो स्वामीनाथ, होकरे सुचा माँस काटी केॅ लानी लैबै
डोमनियाँ के बेहवार देखी दाता निरंजन, ब्राह्मण नें माया करलकै
आपनोॅ बिस हो तार
ब्राह्मण नें हो दाता निरंजन, गौ माता के मरलोॅ देहोॅ पर
देलकै अमृत छिड़ हो काय
अमृत छिड़कतैं दाता निरंजन, गैया उठि केॅ चरेॅ लागलै हो भाय
जबेॅ डोमनियाँ के नजर पड़लै गैया पर,
तेॅ देखै छै गैया केॅ उठि केॅ चरतें हो भाय
है देखी केॅ डोमनियाँ रुकी गेलै हो भाय
डोमनियाँ केॅ रुकतें देखी डोमा पूछेॅ लागलै हो भाय
तबेॅ तेॅ डोमनियाँ के मुँहोॅ के बोली खतम होय गेलै हो भाय
सुनोॅ-सुनोॅ स्वामीनाथ सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
यहेॅ गैया हो स्वामीनाथ देखलेॅ छेलियै हम्में मरलोॅ हो
एतना सुनतैं डोमा नें डोमनियाँ केॅ कहै समु हो झाय
हेगे सतवरती तों हमरा ठगी रहलोॅ छैं गे
चलें-चलें गे सतवरती सैरा दोहा गे घाट
हम्में सूअरी केॅ पानी पिलाय खिनी देखलेॅ छियै
एक ठो गे लहास
होकरे शुद्ध माँस काटी केॅ भोजन गे बनाय
हों-हों दाता निरंजन, दोनों जीव मिली केॅ चललै
सैरा दोहा किनार
जबेॅ दोनों जीव मिली केॅ गेलै सैरा दोहा हो किनार
वही कालोॅ में दाता निरंजन, माया करलकै विस हो तार
माया विसतार करी केॅ दाता निरंजन लहाशोॅ पर अमृत
देलकै छिड़ हो काय
अमृत छिड़कतैं दाता निरंजन, लहासें उठि केॅ जपेॅ लागलै
हरि हो नाम
जबेॅ नदी किनार पहुँचलै तेॅ डोमा पड़ी गेलै
आचरजोॅ में हो भाय
तबेॅ तेॅ डोमनियाँ कहै लागलै डोमा केॅ समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो स्वामीनाथ तों कहिनें रुकी गेलोॅ हो
डोमा कहै लागलै डोमनियाँ केॅ समु हो झाय
सुनें-सुनें गे सतवरती सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
हम्में देखलेॅ छेलियै गे सतवरती, है मनुखोॅ केॅ मरलोॅ गे
अखनी देखी रहलोॅ छियै गे, जपी रहलोॅ छै हरि-हरि हो नाम
हेकरोॅ मतलब छै गे सतवरती, है कोय ब्राह्मण नै छेकै
है छेकै कोय पंथेॅ हो गोसाँय
जे कि हमरा जाँचै लेॅ आइलोॅ छै द्वार
आबेॅ दोनोॅ प्राणी निराश होय केॅ लौटी चललै
आपनोॅ हो महल
रास्ता में लौटी केॅ दुन्हू जीवें करेॅ लागलै
मने मन हो विचार
हरिया कहै डोमनियाँ केॅ समु हो झाय
सुनें-सुनें गे सतवरती, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
हमरा मारी केॅ गे सतवरती दहीं ब्राह्मण केॅ भोजन हो कराय
तों गे सतवरती आपनोॅ बेटा लैकेॅ गुजर-बसर गे करिहैं
हमरा जुगा गे सतवरती ढेरी मिलतौ गे डोम
एतना सुनी केॅ डोमनियाँ डोमा केॅ कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो स्वामीनाथ सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
हमरै मारी केॅ हो स्वामीनाथ ब्राह्मण केॅ देहोॅ भोजन हो कराय
आपनें रही केॅ करिहोॅ राजपाट आरो जीवन हो बसर
हमरा जुगा हो स्वामीनाथ अनेको मिलतौ हो डोमनियाँ
ई सब बातचीत करतें-करतें पहुँची गेलै हो महल
माय-बाबू के पहुँचतें बालक रणजीत भी ऐलै ऐंगन
माय-बाबू केॅ झगड़तें देखी बालक रणजीत पूछै हो भाय
कथी लेॅ झगड़ै छोॅ देहोॅ हमरा बत हो लाय
एतना बोल सुनी केॅ हरिया कहै रणजीत केॅ समु हांे झाय
सुनें-सुनें रे दुलरुवा बेटा, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
हम्में कहै छियै रे बेटा, हमरा मारी केॅ ब्राह्मण केॅ दहीं
भोजन हो कराय
माय कहै छौ रे बेटा, हमरा मारी केॅ दहोॅ भोजन हो कराय
माय-बापोॅ के बात सुनी केॅ रणजीत नें माय-बापोॅ केॅ
कहै समु हो झाय
सुनोेॅ-सुनोॅ हो मोरा जन्मदाता सुनोॅ परेमोॅ साधु हो भाव
सुनोॅ-सुनोॅ हो पिताश्री, आदमी नें गाछ लगाय छै छाया के लेली
बेटा पैदा करै छै सुखोॅ के लेली
बाबूजी हो, बाबू मरला सें लोग सूअर हो कहाबै
माताजी मरला सें लोग टूअर हो कहाबै
से हो तोरानी मरला सें हमरा भारी दुःख ही होतै
यै लेली हो बाबू, तोरानी हमरा मारी केॅ ब्राह्मण केॅ भोजन
देहोॅ हो कराय
एतना सुनी केॅ हरिया नें कहै समु हो झाय
जबेॅ हमरानी तीनों प्राणी मरै लेॅ छोॅ तैयार
तेॅ चलें ब्राह्मण के हो नगीच
तीनों प्राणी हो दाता निरंजन
हाथ जोड़ी केॅ खड़ा होलै ब्राह्मण के हो नगीच
तीनोॅ प्राणी केॅ खड़ा देखी केॅ ब्राह्मण नें हरिया केॅ
कहै समु हो झाय
कीयेॅ रे हरिया भोजन तैयार होलै की नै रै
कीयेॅ रे हरिया तोरोॅ भोजन कराय के मन नै छौ की रे
एतना सुनी केॅ हरिया नें ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो ब्राह्मण सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
तोरोॅ जेकरोॅ माँस खाय के इच्छा हुवेॅ, होकरा आज्ञा देॅ हो बाबा
एतना बोल सुनी केॅ ब्राह्मण नें हरिया केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
आभी रणजीत बालक छै शुद्ध रे, हेकरा मारी केॅ भोजन रे कराव
आरो सुनी ले रे हरिया, जों रणजीत केॅ मारै खिनी एक्को बूँद
लोर गिरलौ तेॅ हम्में भोजन नै करबौ रे
एतना बोल सुनी रणजीत खुशी सें नाँची उठलै हो भाय
तबेॅ दोनों प्राणी हाथोॅ में हथियार लैकेॅ
रणजीत केॅ काटै लेॅ होय गेहो तैयार
दुन्हू मिली केॅ एक्कैं छबोॅ में देलकै सिर अलग करी हो भाय
फिनू दुन्हू नें मिली केॅ माँस बनाबेॅ लागलै हो भाय
यही बीचोॅ में हरिया मशाला लानै लेॅ गेलै हो बाजार
एतनै में डोमनियाँ मने मन करै हो विचार
अकेल्ले बाबा नें कत्तेॅ खैतै हो माँस
येहेॅ विचार करी केॅ डोमनियाँ नें सिरा राखी लेलकै हो चोराय
कुच्छु देरोॅ रोॅ बाद हरिया मशाला लैकेॅ ऐलै हो ऐंगन
फिनु मशाला बाँटी केॅ माँस चढ़लकै चूल्हा पर हो भाय
डोमनियाँ के बेहवार देखी दाता निरंजन
ब्राह्मण नें माया करलकै हो विसतार
पाँच मन जलावन जरी गेलै, नै सिझलै हो माँस
माँस नै सिझतेॅ देखी केॅ दाता निरंजन
हरिया गेलै ब्राह्मण के हो पास
ब्राह्मण के नगीच जाय केॅ दाता निरंजन
हरिया नें कहै लागलै ब्राह्मण केॅ समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो बाबा, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
पाँच मन जलावन जरी गेलै बाबा
नै सीझै छै हो माँस
एतना बोल सुनी दाता निरंजन ब्राह्मण नें हरिया केॅ
कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
है बात हमें पोथी-पतरा देखी केॅ ही बताबेॅ पारौं
आरो ब्राह्मण नें पोथी-पतरा उलटाबै लागलै हो भाय
पोथी-पतरा देखी केॅ दाता निरंजन हरिया केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
तोरोॅ रे जनानी रे हरिया, बेटा रोॅ सिर राखलेॅ छौ चोराय
यहीं रे कारणें सें नै सीझै छौ माँस
मनुखोॅ रोॅ सिरा ही तेॅ शुद्ध माँस होय छै रे हरिया
एतना बोल सुनी केॅ हरिया गेलै आपनोॅ हो ऐंगन
ब्राह्मण के कहलोॅ हरिया नें डोमनियाँ केॅ कहै समु हो झाय
तों गे डोमनियाँ बेटा रोॅ सिरा राखलें छै चोराय
सें तों निकाली केॅ मूसल सें सिरा चूरी केॅ माँस हो बनाव
आरो चूरै खिनी एक्को बूँद आँसू नै गिरौ
तबेॅ सिझतौ सब ठो गे माँस
एतना सुनी केॅ सिरा निकाली केॅ मुसल सें चुरेॅ लागलै हो
फिनू सिरा चूरी केॅ नैका बरतन में चढ़ैलकै चूल्हा पर हो भाय
एतन्हौं पर जबेॅ माँस नै सिझलै तेॅ फिनू गेलै हरिया
ब्राह्मण के हो पास
सुनोॅ-सुनोॅ हो ब्राह्मण सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
सिरबा मूसल में चूरलिहौं, तय्यो नै सीझै छौं हो माँस
सुनें-सुनें रे हरिया, सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
हे रे हरिया, तों कहै आपनोॅ जनानी केॅ µबायाँ गोड़
चुल्ही में देतौ तबेॅ सिझतौ रे माँस
एतना बोल सुनी केॅ हरिया दौड़लोॅ गेलै हो ऐंगन
ऐंगना में जाय केॅ डोमनियाँ केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें गे सतवरती सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
तोरा बाबा नें कहै छौ, बामा गोड़ चूल्ही में गे लगाय लेॅ
तबेॅ गे सतवरी सिझतौ माँस हो आहार
एतना बोल सुनी केॅ सतवरती कहै छै
हमरोॅ बेटा मरलोॅ, हम्मूँ मरि केॅ काया अमर करी हौ लों
एतना कही केॅ सतवरती नें आपनोॅ गोड़ देलकै
चुल्ही में हो लगाय
गोड़ चूल्ही में देतैं हो दाता निरंजन
माँस सीझी केॅ होय गेलै हो तैयार
माँस सिझतैं दाता निरंजन
हरिया गेलै एक थरिया में परोसी केॅ विजय हो कराय
वही समय में दाता निरंजन, पूछै छै ब्राह्मण नें हो भाय
सुनें-सुनें रे हरिया, कै थरिया में लगैंने छै रे भोजन
हरिया नें कहै छै ब्राह्मण केॅ समु हो झाय
हम्में एक्के थरियाँ में खाली तोरा बास्तें लगैनें
छियौं हो भोजन
एतना सुनी केॅ ब्राह्मण नें कहै छै हरिया केॅ समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
तो लगाभैं रे हरिया चार थरिया में
तीन प्राणी तोहें आरो एक हमरोॅ रे लगाव
एतना बोल सुनी हरिया ब्राह्मण केॅ कहै समु हो झाय
सुनोॅ-सुनोॅ हो ब्राह्मण, सुनोॅ परेमोॅ के साधु हो भाव
हम्में तेॅ आपनोॅ बलकबा केॅ मारि केॅ भोजन करलिहौं
हो तैयार
जबेॅ तोरा बेटा नै छै रे तेॅ तोरा हाँ ने करबौ रे भोजन
जेकरा घरोॅ में बेटा नै रहै छै, हौ होय छै जग रोॅ रे पापी
आरो जौंने निरवंशी हाँ भोजन करतै, वहो होतै जग रे पापी
यही पलोॅ में हरिया के अज्ञानोॅ रोॅ पर्दा हटलै रे भाय
आरो कहै लागलैµमोरा बेटा खेलै लेॅ गेलोॅ छै बहार
से तों हो बाबा भोजन करोॅ हो सुसार
यही बातोॅ पर ब्राह्मण नें हरिया केॅ कहै समु हो झाय
सुनें-सुनें रे हरिया सुनें परेमोॅ के साधु हो भाव
पहिलें तों रे हरिया, चार थरिया में भोजन हो लगाव
चार थरिया में भोजन लगाय केॅ तों हकारोॅ
दैकेॅ बोलाव आपनोॅ बेटा
तबेॅ हम्में करबौ भोजन रे सुसार
हरियाँ नें द्वारी के डेढ़िया पर सें
हकारोॅ दै लेॅ गेलै हो बहार
यही बीचोॅ में ब्राह्मण आलोपित भई हो जाय
हरिया केॅ हकारोॅ देतैं दाता निरंजन
बलकवा दौड़लोॅ चललोॅ ऐलै
तबेॅ देखै छै ब्राह्मण के कोय पता नै हो ठिकानोॅ
तबेॅ डोमा-डोमनियाँ के ज्ञानोॅ रोॅ पुड़िया
खुललै हो भाय
वही दिनमां सें तनोॅ-मनोॅ आरो धनोॅ सें
करेॅ लागलै भगति हरि हो नाम
हो दाता निरंजन आरो फैललै वही दिनाँ सें
धरमोॅ के पर हो चार
वै दिनां सें डोमा बेसीये गावै भगति हरि हो नाम
आरो डोमनियाँ बजाबै करेॅ हो ताल
यही बीचोॅ में कुमार रणजीत उछली-उछली
गाबै भगति हरि हो नाम
डोम-डोमनियाँ के भगति देखी
होय गेलै सगरो धरमोॅ के पर हो चार।