भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन- त्रिंजण / हरदीप कौर सन्धु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
21
मन- त्रिंजण
लो तेरी याद आई
हँसी तन्हाई
22
तिरती रही
बैठ यादों की नाव
तुम्हारे संग
23
यादें झूमर
नाचे सजाके माथे
मन- मयूर
24
कुछ पिघला
जाग गईं सुधियाँ
आँखें सजल
25
मन पहुँचा-
यादों के पंख लगा
गाँव -आँगन
26
पाखी हैं यादें
मन खुला आसमाँ
उड़ी ये कहाँ
27
खुशबू बन
महके है बिटिया
घर- आँगन
28
बिटिया होती
फूल- पँखुरियों पे
ओस के मोती
29
नन्ही -सी परी
वो घुँघरू की मीठी
रुनझुन- सी
30
माँ के आँगन
फूलों जैसी बिटिया
दिव्य सर्जना