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मन मेरा उलझनों में रहता है / संजू शब्दिता
Kavita Kosh से
मन मेरा उलझनों में रहता है
और वो महफ़िलों में रहता है
आग मज़हब की जिसने फैलाई
खुद तो वो काफ़िरों में रहता है
इश्क़ में था किसी ज़माने में
आज वो पागलों में रहता है
बीच लहरों में जो मज़ा साहिब
वो कहाँ साहिलों में रहता है
खौफ़ शायद किसी का है उसको
आजकल काफिलों में रहता है