भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन लागत जाको जबै जिहिसों / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन लागत जाको जबै जिहिसों
करि दाया तो सोऊ निभावत है ।
यह रीति अनोखी तिहारी नई
अपुनो जहाँ दूनो दुखावत है ।
'हरिचंद जू' बानो न राखत आपुनो
दासहु हवै दुख पावत है ।
तुम्हरे जन होइ कै भोगैं दुखै तुम्हें
लाजहु हाय न आवत है ।