भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मरना होगा / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
मरना होगा
इस होने को तो होना है
लेकिन
तब तक
इस जीने को तो जीना है
जीते-जीते
हर संकट से
डटकर क्षण-क्षण
तो लड़ना है
लड़ते-लड़ते
आगे-आगे
बढ़ते-बढ़ते
ही बढ़ना है
अनगढ़ दुनिया को हाथों से
सोच-समझकर
ही गढ़ना है।
रचनाकाल: ०१-०२-१९९१