साँसों में मेरी भीनी खुशबु सी छा रही है
यादों के झूले पर तू मुझको झुला रही है
पाया है मैंने सबकुछ जो आज तक चाहा
दूरी मगर तुमसे मुझको रुला रही है
तंगदिल शहर में मैंने दड़बों को घर बनाया
गाँव की सुनी गलियाँ हर पल बुला रही है
दीखते है मुझको पग-पग नये-नये चेहरे
सूरत तेरी फिर क्यूँ मुझे इतना सता रही है
देखो जरा सारा जहाँ कैसे महक रहा है
मेरे महबूब की खुशबु केसर लुटा रही है
यह जानकर भी ख्वाहिश होती नहीं पूरी
'सागर' की आँखें हर पल सपने सजा रही है||