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महीना अगस्त का / बरीस पास्तेरनाक

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ठीक जैसे वचनबद्ध हो,
तड़के सुबह की किरण परदों के बीच से
एक तिरछी नारंगी रंग की लकीर
बनाती हुई पहुँच गई सोफ़े पर ।

तपती सूरज की रोलियाँ
पास के जंगलों में गाँव के घरों पर
मेरे बिछावन और गीले उपधान पर फैल गईं और फैल गईं
क़िताब की आलमारी के पीछे की दीवार पर ।

मुझे याद है, उपधान क्यों गीले थे ?
मैंने सपना देखा था
तुम बार-बार आ रही थीं
जंगलों से होकर, मुझे अलविदा कहने को ।

तितर-बितर भीड़ से होकर तुम आ रही थीं
तब किसी ने पुराना कैलेण्डर देख कर बताया था
आज का दिन अगस्त का छठा दिन था
ईसा मसीह के रूप-परिवर्तन का दिन ।

अक्सर आज के दिन
टैवोर की पहाड़ी से
एक शिखाहीन प्रकाश आता है
और शिशिर एक संकेत की तरह साफ़
लोगों की आँखें अपनी ओर खींच लेता है ।

तुम चली आ रही थी
छोटे-छोटे भिखमंगे-से नंगे
काँपते लचकते श्वेत वल्कलवाले वृक्षों से होकर
क़ब्रिस्तान की लाल अदरखी
रंग वाली झाड़ियों के बीच
जो भासित थीं हनी-केक की तरह ।

उन चुप्पी साधे तरु-शिखरों पर
महान पड़ोसी था आकाश
और कौओं के दीर्घ-लम्बायित
काँव-काँव की प्रतिध्वनि में
दूरी पुकारती थी दूरत्व को ।
गिरजाघर के प्रांगण के बीच
वृक्षों पर डटी थी मौत
एक सरकारी सर्वेक्षक की तरह
और देख रही थी मेरे मुर्दा चेहरे में
मापने ह्तु
कि मेरे लिए कितनी बड़ी क़ब्र ख़ोदनी थी ।

पास ही एक शांत आवाज़
स्पष्टतः सभी सुन सके थे ।
वह मेरी ही आवाज़ थी भूत की,
पैगम्बरीय आवाज़
सर्वनाश से बिल्कुल अछूती, यों :
अलविदा, अलौकिक रूप-परिवर्त्तन के
नीलेपन को, स्वर्णिमता को ।

विदा, मेरी मृत्यु के अन्तिम क्षणों की तिक्तता को
जिसको एक नारी की अन्तिम पुचकार ने
मधुरता प्रदान की थी--
अलविदा, उन वर्षों को
जिनकी कोई अवधि नहीं ।
विदा उस रानी को
जिसने दर्प-दमन की गहनता को
चुनौती दी थी
ओ मेरे वर्ष !
समर-भूमि तो मैं था तुम्हारी ।

पसरे पंखों के वितान को अलविदा
उड्डयन की मुक्ति कठोरता को अलविदा
अलविदा संसार की उस प्रतिमा को
जो भाषणों में उभरती है
विदा सर्जनात्मकता को
कारनाम-ए-करिश्मात को ।


अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह