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माँथ पर धान / कालीकान्त झा ‘बूच’

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की लचकल अछरल पछरल डाड़
की मचकल आँचर गछरल फाड़
चालि उत्तान छै,
माँथ पर धान छै
बढ़ै छै रूनरून रूनरून शीस
पड़ै छै दीठि पायलक दीस
कंठ मे गान छै
माँथ पर धान छै
की चमकल बुट्टी-बुट्टी देह
ठोर पर हासक पातर रेह
गाल तर पान छै
माँथ पर धान छै
आँखि पर लागल लाजक बोझ
घोघ सँ ताकय सोझे सोझ
लक्ष्य खरिहान छै
माँथ पर धान छै
भक्त रहलै मंदिर के झोलि
गेलै दू-दू शिव आसन डोलि
अभय वरदान छै,
माँथ पर धान छै
वियोगक वीतल कारी रैन
जुड़ायल आइ मुँड़ायल नैन
गगन मे चान छै,
माँथ पर धान छै
काटि कऽ माल भोग केर खेत
बान्हि कऽ बोझ चललि समवेत
गमागम प्राण छै
माँथ पर धान छै
वदन पर अनुचित अलुपित दृष्टि
चरण पर करू सिनेहक दृष्टि
एतय भगवान छै
माँथ पर धान छै
हे चरऽरक चंडी धऽरक देवि
देश बढ़ि रहल अहाँ के सेवि
मोछ पर शान छै
माँथ पर धान छै