भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ / कविता कानन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
माँ तो
केवल माँ होती है।
कर्म उसके
अकथनीय
उसके गुण
अवर्णनीय ..
एक एहसास है माँ
महसूस करो
आत्मा की गहराइयों में
एक पूजा है माँ
अदेखे ईश्वर का
अनुपम रूप।
मैंने नहीं देखा
ईश्वर को
पर माँ को देखा है
महसूस की है
उसके आँचल की
सुरक्षा
पायी है सदैव
उसकी रक्षा।
वो मुकरती नहीं
वादे से
डगमगाती नही
अपने इरादे से
क्योंकि
वह माँ है
केवल माँ।