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माँ / त्रिलोक महावर
Kavita Kosh से
कमर झुक गई
माँ बूढ़ी हो गई
प्यार वैसा ही है
याद है
कैसे रोया बचपन में सुबक-सुबक कर
माँ ने पोंछे आँसू
खुरदरी हथेलियों से
कहानी सुनाते-सुनाते
चुपड़ा ढेर सारा प्यार गालों पर
सुबह-सुबह रोटी पर रखा ताजा मक्खन
रात में सुनाईं
सोने के लिए लोरियाँ
इस उम्र में भी
थकी नहीं
माँ तो माँ है