महाशक्ति जय विश्वव्यापिनी
जग की कारणभूता दुर्गे
दुर्गदारिणी!
क्या न तुम्हारे ही गतिपथ पर,
पक्ष, मास, ऋतु, दिन, संवत्सर,
नाच रहे सब एक-एक कर,
रणकरालिनी?
टिके तुम्हारे शक्तिकेन्द्र पर,
महत और अणु नए वेष धर,
तुममें आदि अन्त का उत्तर
विश्वस्वामिनी!
दिव्य तेज से विद्युत्मण्डित,
जला पूर्वकृत मल को संचित,
मन पर अमृत अंक कर अंकित,
सिंहवाहिनी।