माँ तुम कंहा छिपी गयी हो / साधना जोशी
माँ तुम कंहा हो ?
मुझे नजर क्यों नहीं आती,
मुझे स्पर्ष क्यों नहीं करती
हृदय से क्यों नहीं लगाती ?
मैं नादान हूँ तुम जानती हो न
मैं तुम्हंे तारों में खोजता हूँ,
पेड़ांे की सर सराहट में ढूँढता हूँ
झाड़ियों के झुरमुट में देखता हूँ ।
तुम्हारे विना मुझे कोई पास नहीं बुलाता माँ
अपने गले से भी नहीं लगाता
मेरे बालों में कोई उंगलियां नही फेरमा
ठंडे हाथों को कोई अपने बगल में नहीं दबाता
मेरी चोट आने पर किसी के आँषू भी नहीं बहते ।
मेरी षैतानियों से कोई मुस्कराता नहीं
बाँहे फैलाये कोई अपने पास भी बुलाता नहीं
मैं किसके कन्धों पर झूल कर मस्ती क
अंधेरी रातो में डर कर किसके सीने चिपट जाऊँ माँ।
कौन मेरे बैग को कन्धे से उतारेगा
गरम-गरम खाना अपने हाथों से खिलायेगा
पानी की गरम फुहारों के साथ कौन कुहनी रगड़ेगा माँ ।
ये सब तो यमराज भी जानते हैं ना
उनकी भी तो माँ होगी उन्हें भी तो उनकी याद आती होगी
तो फिर क्यों ? वह किसी बच्चे की माँ को उनसे दूर करता है माँ ।
मां तुम कहाँ हो ?
मुझे नजर क्यों नहीं आती ।