Last modified on 26 अक्टूबर 2016, at 03:25

माटिक महादेव / कांचीनाथ झा ‘किरण’

बलवान मानवक हाथक बलसँ
बैसल छह तों सराइ पर
बनि गेलह अछि पूज्य
पाबैत छह धूप-दीप-नैवेद
कबुलापाती सेहो होइ छह
लोक अछि आन्हर परबुद्धि
जानैत अछि स्थानक टा सम्मान
नहि तँ, जकर बलें रुचिगर
बनैत छै, भोज्य पदार्थ
तै लोढ़ी सिलौटकेँ ओंघड़ा
मंदिरमे पड़ल निरर्थक
पाषाण पिण्डकेँ क्यो की करैत प्रणाम
तैं हे माटिक महादेव! नहि करह कनेको अहंकार
जखनहि हेतह विसर्जन
लगतह सभ बोकिआबए
हँ, अक्षत चानन फूल
पूज्य पदक किछु चेन्ह
जा धरि रहतह लागल
लत-खुर्दनिसँ रहि सकै छह बाँचल
किन्तु निष्पक्ष परीक्षाक
कालक प्रहारसँ पाबि ने सकबह त्राण
झड़ि धोखरि जेतह सब चेन्ह।
तखन की हेबह ? से करह कने अनुमान
पदे प्रतिष्ठित केर होइत अछि
की अंतिम परिणाम
से जनै छह
केवल पद-सत्कार