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माठाई / नीरज दइया
Kavita Kosh से
थारै सोच पाखती
ओळख नीं सकूं
म्हारो सुख-दुख
अर म्हारी ठौड़।
बाबा!
थांरै छळ-छंदां बाबत
म्हारी हदां है पोची।
म्हैं म्हारी
हदां री सींवां मांय
छेकड़ धार ली है माठाई
अर नटग्यो हूं
गोटी बण’र सिरकण सूं।