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मातृभूमि तेरी जय हो / संतोष कुमार सिंह
Kavita Kosh से
मातृभूमि तेरी जय हो।
पुण्यभूमि तेरी जय हो।।
शस्य श्यामला जन्मदायिनी।
रत्नगर्भ संचित प्रदायिनी।।
हिमगिरि मस्तक मुकुटधारिणी।
बहती गंगा मुक्तदायिनी।।
ईश्वर का इस पुण्यभूमि पर,
आना जैसे तय हो।
सत्य-अहिंसा वाला देश।
देता रहे शान्ति संदेश।।
षट्ऋतुओं का आना-जाना।
विविधि तरह का रुचिकर खाना।।
ऋषि-मुनियों की भूमि यहाँ पर,
पग-पग अविजित नय हो।
जाति-धर्म भी यहाँ अनेक।
बोली-भाषा भिन्न विशेष।।
राम और रहते रहमान।
इक दूजे का कर सम्मान।।
राम-कृष्ण, गौतम, गांधी का,
सत्यादर्श अजय हो।
सूर्य ज्योति पहले फैलाए।
तब पश्चिम में कदम बढ़ाए।।
नद-गिरि का भी मान यहाँ पर।
नारी का सम्मान यहाँ पर।।
जन्मे वीर यहाँ जिस रज में,
उसकी विश्व विजय हो।