मानव गोदाम / शिवदेव शर्मा 'पथिक'
मानव का पेट क्या?
दुनिया का नक्शा है, नारंगी सा गोल-गोल!
मानव के पेट में
सबसे बड़ा एक, चमड़े का थैला है।
ऊपर से चिकना है,
भीतर में मैला है।
जिसमें हजारों समुन्दर समा जायें।
पेट भी हो ऐसा, हिमालय पचा जाय।
यानि दुनिया में जितनी भी चीजें हैं,
सबको पचाने की शक्ति है पेट में!
पेट देवता को मेरा नमस्कार है।
दुनिया में मानव का,
पेट ही पहाड़ है।
पेट एक झोला है।
जिसकी सिलावट में, ईश्वर के टेलर ने,
बुद्धि की सूइयों में,
अँतड़ी के धागों को रख-रख के,
सी-सी के,
अपने कमाल का परिचय दिखाया है।
टेलरिंग के नाम को आगरे के ताज़ से,
मिश्र के पिरामिड,
सिकन्दर के पंजे से,
बैवीलोन के बाग से भी उंचा उठाया है।
पेट है गोदाम एक!
जिसमें आसानी से टन के टन,
मन के मन, चावल समा जायें।
गेहूँ समा जायें।
मिर्चा-मलाई से हलुआ खटाई तक,
मरुआ-मिठाई तक,
दुनिया में जितनी पचाने की चीजें हैं,
ढ़ेर के ढ़ेर सड़ते हैं मानव गोदाम में।
फिर भी फिकर क्या? मानव गोदाम है न!
भरते चलो भरते चलो, भरना ही काम है न!
लेकिन गोदाम यह!
अचरज की बात है जो अभी तक खाली है,
टी.बी पेसेन्ट के, छूतवाले कमरे सा।
इसको न भरा देखा, बड़े-बड़े पुरूषों,
अवतारों ने,
लेनिन नेपोलियन ने,
मार्क्स ने,
बुद्ध ने या ईसा ने,
जर्मन-जापान या उड़ीसा ने,
गांधी ने या जिन्ना ने।
अब के जवाहर ने भी अभी तक भरा ही नहीं।
देखा किसी ने नहीं भरती गोदाम को।
क्या मजाल है कि कोई माई का लाल हो,
चाहे राम हो, गोपाल हो,
नृसिंह या कल्कि. कोई भी अवतार हो,
भरा हुआ देखा हो सपने में,
मानव गोदाम को।
मानव का पेट एक भीषण समस्या है,
ऐसी पहेली है जिसको सुलझाने में,
पंडित-धुरन्धर ने,
हिसाबी-किताबी ने,
खींसें निपोड़ दी।
चर्चा भी छोड़ दी।
कोई ऐसा हुआ नहीं, जिसने निकाला हो.
निदान इस समस्या का।
किसी भी फरमूले से, उत्तर दो हिसाब का,
तो जाने हम ईश्वर के बेटे हो।
ज्ञानी हो, पंडित हो।
सामने में पेट के तो, वेद सभी झूठे हैं।
शास्त्र सभी फीके हैं।
दुनिया की तड़क-भड़क, नाच-रंग,
सब पर जमाया है, रोब इसी पेट ने।
देखने में छोटा सा, यही पेट!
बाबन का अनुपम अवतार है।
बाबन ने नापी भी धरती थी डेग से,
लेकिन इस पेट को, रहने का ठौर नहीं।
मानव का पेट एक चलता कारख़ाना है,
जिसमें समाये हैं, हजारों चितरंजन,
असंख्य मील टाटा के।
दुनिया में पेट ही, ऐसा कारख़ाना है,
चलता है रोटी पर, दाल पर, पानी पर;
इसकी कमी का नाम, भूख हड़ताल है,
चूहे भी कूदते हैं तभी कारख़ानें में,
इसकी मशीन क्या, चमड़े की बिजली है,
पावर का हाउस है,
चाहे तो चूहे भी खा जाय।
बकरे को छोड़िये, नेवले के साथ ही,
गीदड़ पचा जाय।
पेट के ही कारण; ठना था महाभारत,
जिसमें भगवान ने भी हिस्सा बँटाया था।
ख़ुद भगवान ही जब, पेट नहीं भर सके,
औरों की बात क्या?
और यहाँ, दाने के लाले हैं,
शोषण का जमाना है।
जो भी हो!
सृष्टि को तो आदि से अन्त तक,
पेट ही, शरण देता आया है।
इसी के प्रमाण तो आप भी हैं,
मैं भी हूँ, और सारे लोग हैं।
मानव की बात तजें, झखते हैं पेट लिये,
दुनिया के कुत्ते भी, गीदड़ भी,
संशय हो आपको, तो देखने को,
पावर वाली बुद्धि का चश्मा लगाईयेगा!
अब के जमाने में, सबको सता रही,
पेट की समस्या है।
इसीलिये झगड़ा है स्वेज का,
पाक-कश्मीर का!
पेट का ही नया नाम, विनोबा का भूदान है।
देश की अकाली है।
नेहरु की माँग है।
कितना कहें, योजना-विकास है।
टोकरी भर बात है।
यह है तो वह है।
फलाँ है तो चिलाँ है।
सुना है कि राम राज,
फिर से बसेगा यहीं।
राम जाने पेट राज्य की भी कहीं चिन्ता है?
ऐसे गोदाम के भरने में देर है क्या?
फिर कभी पेट राज्य,
राम राज्य की तरह धरती पर आयेगा?
हो कोई जवाब तो कल्ह तक बताईयेगा।
मानव गोदाम की बातें बताने में,
कविजी का दोष क्या?
कवि जी के सामने तो,
सारा भूगोल है,
सूरज भी गोल है,
चन्दा भी गोल है,
दुनिया भी गोल है।
मामला भी गोल है।
मानव गोदाम का कमरा भी गोल है।
आपका भी गोल है,
हमारा भी गोल है।
चक्कर लगाईये तो फिर यहीं आईयेगा।
अनपच हो ज़्यादा तो,
पास की दूकान से,
मानव गोदाम को,
पाचक खिलाईयेगा।
अपनी जठराग्नि को,
दाना नहीं मिलने पर, करना हो शान्त तो,
साग ही उबालकर
चबा-चबा खाईयेगा।
तब कहीं कवि जी के,
शान्तिवाले लेक्चर को,
पावभर समझियेगा,
फौलो कर पाइयेगा।