भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मान नही अपमान बहुत है / आर्य हरीश कोशलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मान नही अपमान बहुत है
भेंट नही अनुदान बहुत है

गाँव समूचा घोंटने ख़ातिर
एक प्रभो परधान बहुत है

यार नही है ज़ेब में पैसा
माँल सजा सामान बहुत है

ढंग नही बस माँग रहे हो
सीख के देखो तान बहुत है

मान सहित जो तुमने खिलाया
एक तुम्हारा पान बहुत है