भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माया / रेणु हुसैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


माया तुम्हें छोड़ना होगा
पर तुमने अपने ख़्वाबों से
हमें रंगा
हम रंगते चले गए

माया हमें लौटना होगा
पर संग तुम्हारे खुद को भूल
हम चलते चले गए

माया हमें भूलना होगा
मगर तुम्हारी महक ने बांधा
हम बंधते चले गए

माया बहुत हंसीन थीं तुम
तुमने किया हमेशा छल
हम छलते चले गए