माय / अनिमेष कुमार
माय सब रिश्ता सेॅ ऊपर छै
जिनगी हिनकै सेॅ फूटै छै,
हम्मी हिनकोॅ करलव छियै।
माय नेॅ हमरा जन्म देलकोॅ
पाली-पोशी केॅ उड़ात बनैलकोॅ
पहलोॅ बोली मैय्यें सिखैलकोॅ।
बुतरु रोॅ सबठो काम करै छै
हमरोॅ माय तेॅ खूब खटै छै
तहियोॅ उह! तेॅ नै बोलै छै।
तितलोॅ कपड़ा क्षणे मेॅ बदलै
अँचरा तरोॅ मेॅ हमरा झाँपै
ममता केरोॅ पान कराबै।
हमरोॅ बोली माय नै बूझै,
माय रोॅ बोली बुतरु बूझै
कखनू-कखनू सुर धरै छै।
तबेॅ माय नेॅ लोरी सुनाय छै
बुतरु बड़ी चाव सेॅ सुनै छै
तबेॅ माय केॅ चैन हुए छै।
माय तेॅ छेकोॅ सच्चा लछमी
बुतरु लेली ममता छै हाजिर
तहियो माय केॅ नै दै छै तासिर।
सौंसे जिनगी रोॅ नींव राखै छै
माय होकरा खूब सिंचै छै
कभियोॅ माय हार नै मानै छै।
केना केॅ भूलवोॅ आंचल रोॅ छाँव
जहाँ मिलै छै, जन्नत रोॅ ठाँव
सौसेॅ जिनगी आवेॅ तरसै छौ।
भगवानोॅ आवै लेॅ यहाँ तरसै छै
बुतरु बनै लेॅ व्याकुल छै,
माय रोॅ अँचरा लेॅ कपसै छै।
माय बलोॅ पर है जिनगी बनलोॅ
सुन्दर आरोॅ स्वर्णिम बनलोॅ
कहियो माय नेॅ कुछु नेॅ लेलकोॅ।
जब तांय रहतोॅ माय रोॅ आँचल
बुतरु केॅ नाय होतै हलचल
जीवन मेॅ होतै सुख-शांति।