भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माहौल / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
देश के असली खेवनहार
नेता अफ़सर ठेकेदार !
सारी दौलत के हक़दार,
राष्ट्र-भक्त झण्डाबरदार !
इनकी तिकड़म का संसार
करदे शासन को लाचार,
हमको तुमको बे-घरबार
ये मशहूर बड़े बटमार !
दुष्टाचारी हैं मक्कार,
है धिक्कार इन्हें धिक्कार !
.....
गूँजी किसकी यह ललकार —
जागी जनता, भागो यार !