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मिट्टी से व्यर्थ लड़ाई है / हरिवंशराय बच्चन

मिट्टी से व्यर्थ लड़ाई है।

नीचे रहती है पावों के,
सिर चढ़ती राजा-रावों के,
अंबर को भी ढ़क लेने की यह आज शपथ कर आई है।
मिट्टी से व्यर्थ लड़ाई है।

सौ बार हटाई जाती है,
फिर आ अधिकार जमाती है,
हा हंत, विजय यह पाती है,
कोई ऐसा रंग-रूप नहीं जिस पर न अंत को छाई है।
मिट्टी से व्यर्थ लड़ाई है।

सबको मिट्टीमय कर देगी,
सबको निज में लय कर देगी,
लो अमर पंक्तियों पर मेरी यह निष्प्रयास चढ़ आई है।
मिट्टी से व्यर्थ लड़ाई है।