मिलती है मन को खुशी, जब हों दूर विकार।
नहीं रखा हो शीश पर, चिंताओं का भार॥
चिंताओं का भार, द्वेष का भाव नहीं हो।
जगत लगे परिवार, आदमी भले कहीं हो।
'ठकुरेला' कविराय, सुखों की बगिया खिलती।
खुशी बाँटकर, मित्र, खुशी बदले में मिलती॥
मिलती है मन को खुशी, जब हों दूर विकार।
नहीं रखा हो शीश पर, चिंताओं का भार॥
चिंताओं का भार, द्वेष का भाव नहीं हो।
जगत लगे परिवार, आदमी भले कहीं हो।
'ठकुरेला' कविराय, सुखों की बगिया खिलती।
खुशी बाँटकर, मित्र, खुशी बदले में मिलती॥