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मिल रहे हो जन्मजन्मांतार से / शुभा द्विवेदी
Kavita Kosh से
कभी कभी हो जाती हूँ अशक्त
घटने लगती है जीवन शक्ति
प्राण उष्मा का संचार होता है धीमा
थकता हुआ मन, थकता हुआ तन
विकल हैं प्राण, कहाँ खोजूं वह शक्ति
जो प्रवाहित कर सके ऊर्जा
उष्मित हो जीवन ज़िससे
जीवन की सांध्य बेला
देख रही हूँ तुम्हें "कृष्ण"
तुम्हारे सौंदर्य को
नयन विशाल, बाहु विशाल, उर विशाल
क्यौं नहीं समेट लेते हो स्वयं में मुझे
इस घनघोर निराशा में आशादीप हो तुम
इस अकिंनचन के तुम प्राणआधार हो
अक्समात नहीं मिले हो
मिल रहे हो जन्मजन्मांतार से
निष्प्राण होते जीवन के अवलम्बन हो
बाट जोहते ये नेत्र भी थकने लगे हैं
रोशनी घटती जाती है
आस फिर भी बढ़ती जाती है
सिर्फ एक बार कर जाओ शक्त ऐसा
कि हो जाऊँ विलीन सदा के लिये तुममें!