भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीट्ठी तो कर दे री मोस्सी कोथली / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मीठी तो कर दे मेरी मां कोथली जांगा बाहण कै री देस
मीहां नै झड़ ला दिए
क्यूँ कर जागा रे बेटा बाहण के देस आगे रे नदी ए खाय
सिर पै तो धर ल्यूँ मेरी मां कोथली छम दे सी मारूंगा छाल
मीहां नै झड़ ला दिए
आगै तो बैठी बाहण पा गई कह बीरा घर की रै बात
मीहां नै झड़ ला दिए
अम्मा बी राजी बाबल बी राजी बीरा तो आया लणिहार
मीहां नै झड़ ला दिए
तीजां का आया त्यौहार मौसी री बेबे घल दे
मीहां नै झड़ ला दिए
तीजां का आया सै त्यौहार लाडो तो घर नै आ गई
मीहां नै झड़ ला दिए