भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुंबई रात भर जागती है / गुलज़ार हुसैन
Kavita Kosh से
मुंबई की रात कभी खामोश नहीं होती
यहां रात के सीने में छुपे कई जख्म एक
एक कर बाहर निकलते रहते हैं
फुटपाथ पर लेटे मेहनतकशों की भीड़ में चुटकुले
खोमचे -ठेले समेटकर घर जाते दुकानदारों के मजाक
बस स्टॉपों और प्लेटफॉर्मों के निकट खड़ी वेश्याओं की खिलखिलाहट
और देर रात ऑफिस से घर लौटते नौकरी वालों की मोबाइल पर टिप -टिप मुंबई को बेचैन किए रहती है
कहते हैं ऐसे ही जख्मों के कारण मुंबई रात भर जागती है।