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मुक़द्दर हो गये हालात ऐसे / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
मुक़द्दर हो गये हालात ऐसे
वगरना लोग करते बात ऐसे
बिखर के हो गए हम रेज़ा रेज़ा
जुड़े थे आप से जज़्बात ऐसे
मुनाफ़िक़ थे मेरे लश्कर में वरना
भला में तुम से खाता मात ऐसे
बचाना था चराग़ों को वगरना
हवा के जोड़ता मैं हाथ ऐसे
भला हम को कोई आंखें दिखाता
हमें रहना था घर में साथ ऐसे
मेरे अपने मेरे अपने नहीं थे
वगरना ख़ाली जाती बात ऐसे