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मुक्ति / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
आगे पाँच
और पीछे पाँच
दाहिने एक
और बाएँ एक
वे चल रहे हैं कसे हुए
कुछ लोग जिनकी आँखों पर पट्टी बँधी है
ले जाए जा रहे हैं
आगे बूटों की सधी आवाज़
और पीछे पछुआ में फटे होंठ-सा एक गाँव
यह पतझर का मौसम है शायद
पत्ते झर रहे हैं बेशुमार
एक पेड़ होगा नीम का
और उसके नीचे एक निखहरी चारपाई
जिस पर बाबा बैठे होंगे उदास
वे जानते हैं
जिस दिन वह मरेंगे
मैं नहीं रहूँगा उनके पास
शरीक होना सबसे बड़ी यातना है बाबा
लेकिन मुक्ति क्या है उसके सिवा ?