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मुखौटा / सुधीर सक्सेना
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(देवीलाल पाटीदार के लिए)
तुम कुछ नहीं करते
बस, जुलूस में सबसे आगे चल रहे
शख़्स से कहते हो—
’लो, यह रहा तुम्हारा मुखौटा
यह पीछे कहीं गिर पड़ा था
सड़क पर, जनाब !