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मुग्धा / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

घूमै छै शरत
ऐंगना-ओसरा सेॅ लै कर
बारी-बहियारी तक
पोखर सेॅ नद्दी
तेॅ बांधोॅ सेॅ आरी तक
अघावै नै जरियो छै।

कुछुवो जों देखै छै
पड़लोॅ छै खन्दक मेॅ, खाई मेॅ
ओकरोॅ भी देखै लेॅ
चढ़ी जाय पर्वत पर
वाँही सेॅ झाँकै सें शरत सुकुमारी
हर्षित छै देखी केॅ
पोखर सेॅ लै केॅ
सौकठिया ठोॅ झीलोॅ मेॅ
डोलै छै कमल आरो संगे संग कुमुद
भौरा के बोली सेॅ मातलोॅ
इस्थिर छै पानी ठो
कभी-कभी बोलै
जखनी कि सारस या हंस
नद्दी किनारा मेॅ
अपनोॅ जी खोलै।

शरत नै समझे पारै कि
ऊ बेसी खूबसूरत छै
आकि वर्षा के आखरी पानी मेॅ
नहैली ई धरती।