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मुझको छाता बहुत सुहाता / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
धूप और बरसात बचाता।
मुझको छाता बहुत सुहाता।
जब भी पानी बरसे झम-झम।
छाते को साथ लिये हम।
कूद फाँद करते सड़कों पर,
भले लगे कीचड़ कपड़ों पर,
पानी जब रिमझिम गिरता है,
मुझे भीगना कितना भाता।
मुझको छाता बहुत सुहाता।
छाता लेकर खेल खेलते।
टप् टप् सिर पर बूँद झेलते।
शोर मचाते दौड़ लगाते,
छाता सिर पर ख़ूब घुमाते,
गलियों सड़कों पानी ठिल ठिल,
बहता पानी मुझे लुभाता।
मुझको छाता बहुत सुहाता।
तेज झड़ी जब भी लग जाती।
तब तो आफत ही आ जाती।
सर्द हवा का झोंका आता,
तब छाता भी उड़-उड़ जाता,
बिजली की गर्जन तड़कन से,
मैं तो बहुत-बहुत डर जाता।
मुझको छाता बहुत सुहाता।