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मुझको मिल जाएँ, तो... / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
थोड़े-से फूल-पात
थोड़ी-सी चाँदनी,
नन्हा-सा इंद्रधनुष
मीठी-सी रागिनी-
मुझको मिल जाएँ, तो,
मैं राजा बन जाऊँ!
थोड़े-से मोरपंख
महकी अमराइयाँ,
सागर की रेत, शंख
चमकीली सीपियाँ-
मुझको मिल जाएँ, तो
मैं खुद पर इतराऊँ!
ओस में नहाई-सी
दूब, कमल-पांखुरी,
चिड़ियों का गुंजन कुछ
छोटी-सी बाँसुरी-
मुझको मिल जाएँ, तो
मैं झूमूँ, इठलाऊँ!
छुट्टी के दिन हों कुछ
परियों का साथ हो,
बादल की रिम-झिम कुछ
बिजली से बात हो-
मुझको ये मिल जाएँ
तो मैं नाचूँ, गाऊँ!
पानी की लहरें हों
कागज की नाव हो,
ऊँचे आकाश में
पतंगों का गाँव हो-
मुझको ये मिल जाएँ
तो मैं भी लहराऊँ!