भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझको शाइर समझने लगते हैं / संजू शब्दिता
Kavita Kosh से
मुझको शाइर समझने लगते हैं
हाँ बज़ाहिर समझने लगते हैं
इतना ज्यादा है मेरा सादापन
लोग शातिर समझने लगते हैं
थोड़ी सी दिल में क्या जगह मांगी
वो मुहाज़िर समझने लगते हैं
हम सुनाते हैं अपनी ताबीरें
आप शाइर समझने लगते हैं
इक जरा से किसी क़सीदे पर
ख़ुद को माहिर समझने लगते हैं
जो समझने में उम्र गुज़री है
उसको फिर-फिर समझने लगते हैं