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मुझे मत उछालो / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
मुझे मत उछालो सराहना के झूले पर
कहीं हो न जाए मुझे झूठा गुमान
कहीं बिगड़ न जाए मेरा सन्तुलन
कहीं मैं मुग्ध न हो जाऊँ अपने आप पर
अगर दे सकते हो तो दो थोड़ा-सा अपनापन
मेरे थके हुए वजूद को थोड़ी-सी छाया
मेरे नम सपनों को थोड़ी-सी धूप
उदासी की घडिय़ों में दो मीठे बोल
मुझे मत उछालो सराहना के झूले पर
कहीं मैं भूल न जाऊँ अपनी राह
कहीं मैं भ्रमित होकर पड़ाव को ही न मान लूँ मंज़िल
कहीं ओझल न हो जाएँ मेरे आदर्श
मुझे मत उछालो सराहना के झूल पर ।